वैशाली से 55 किमी की दुरी पे केसरिया नामक ब्लाक है जहॉ हाल ही में हुई खुदाई मे अब तक का सबसे बड़ा स्तूप मिला है। ये स्तूप पाँच विशाल छत से जो अलग-अलग आकार के है,से मिल कर बना है,ये उपर जा कर आपस मे मिल गये है। ये अलग-अलग स्तूप शक्ति और धयान का प्रतीक है।
इस स्तूप के बनने के पिछे की कहानी भी बड़ी रोचक है। किंदवती है कि जब भगवान बुद्ध अपने अंतिम साल मे वैशाली छोड़ कर कुशीनगर जा रहे थे तो गाँव के लोगो का बड़ा समुह उनके पिछे-पिछे चल पड़ा। जब भगवान बुद्ध केसापुट्टा (जो अब केसरिया के नाम से जाना जाता है) पहुँचे तो लोगो से वापस जाने की गुजारिश की तो लोग न चाहते हुए भी दुखी मन से जाने के लिए राजी हो गए। भगवान बुद्ध ने लोगो के दुःख को कम करने के लिए भिक्षा पात्र दिया। ये उस समय की सबसे बड़ी घटना थी।
इसी घटना के कारण यहॉ इस विशाल स्तूप का निर्माण हुआ। फ़ाहियान और हुयेनसांग जैसे इतिहासकारो ने इसका उल्लेख अपने यात्राक्रम मे किया है। जिस केसापुट्टा के स्तूप के बारे मे इन्होने बताया गया है वो आज का केसरिया शहर है।
विश्व के इस सबसे बड़े बौद्ध स्तूप की खुदाई अभी भी जारी है और इसे सहेजा जा रहा है। इस स्तूप की गोलाई 1400 फ़िट,ऊचाई 51 फ़िट,और इसका गुंबद 70 फ़िट ऊँचा है।
इस स्तूप के बनने के पिछे की कहानी भी बड़ी रोचक है। किंदवती है कि जब भगवान बुद्ध अपने अंतिम साल मे वैशाली छोड़ कर कुशीनगर जा रहे थे तो गाँव के लोगो का बड़ा समुह उनके पिछे-पिछे चल पड़ा। जब भगवान बुद्ध केसापुट्टा (जो अब केसरिया के नाम से जाना जाता है) पहुँचे तो लोगो से वापस जाने की गुजारिश की तो लोग न चाहते हुए भी दुखी मन से जाने के लिए राजी हो गए। भगवान बुद्ध ने लोगो के दुःख को कम करने के लिए भिक्षा पात्र दिया। ये उस समय की सबसे बड़ी घटना थी।
इसी घटना के कारण यहॉ इस विशाल स्तूप का निर्माण हुआ। फ़ाहियान और हुयेनसांग जैसे इतिहासकारो ने इसका उल्लेख अपने यात्राक्रम मे किया है। जिस केसापुट्टा के स्तूप के बारे मे इन्होने बताया गया है वो आज का केसरिया शहर है।
विश्व के इस सबसे बड़े बौद्ध स्तूप की खुदाई अभी भी जारी है और इसे सहेजा जा रहा है। इस स्तूप की गोलाई 1400 फ़िट,ऊचाई 51 फ़िट,और इसका गुंबद 70 फ़िट ऊँचा है।