Tuesday, February 3, 2009

बाढ़ का मोची बना शिक्षक !

रामशशि एक आम आदमी एहसरत थी पढने की कुछ करने की पर हैसियत ने उम्मीदों का दामन छोड़ दिया ध् भुख के सामने तमन्नाएं उडान भर ना सकी ।
मैट्रिक के बाद पेशे से जुड़ना परा। आज वो एक मोची है। दुर जो वो दुकान हैए वो रामशशी की है अक्सर वहाँ लोग अपने फ़टे जुते चप्पल की मरम्मत कराने के लिए रुकते है। थोड़ा करीब गया और करीब गया तो रामशशी की वो दुकान पाठशाला बनती दिखी समझने को कुछ नही था ये तो बस रामशशी की वो धुन्धली सी तस्वीर जिसमे वो रग भरने की कोशीश कर रहा है। दिल की ये आरजु है की दुसरा रामशशि न बने ।
छुटकी को गणित सिखाते है तो बीच बीच मे अलका को पहाड़ा भी पढाते भी हैए छोटु पिछे शरारत करता है तो एक बार निगरानी भी करते है। मास्टर साहब जैसे नही लगते पर ये इनकी पाठशाला है और ये इनके मास्टर साहब है। इनसे इनको उम्मीद बस इतनी की कल ये कुछ बने और जब भी मिले तो गुरु को सलाम करे।
कल तक सोनी फ़िर मोहन उसके बाद चन्चल फ़िर रेखाए बच्चे आते गये सड़क किनारे पढ्ने पढाने का दोड़ शुरु हुआ। रामाशीश मे पढाने की इच्छा शक्ति हैए बच्चो मे पढ्ने की ललक है।
बढ्ती तदात सरकार को सोचने पर मजबुर करती है कि बच्चो को स्कुल चाहिएएपढाई चाहिए ना कि खिचड़ी की खुराक ।
क्या आपने कभी सोचा है ! बाढ़ पटना जिला का एक शहर है।
अमितेश प्रसून

पटना एक नजर !

मै समय हू। मैने हर पल को जिया है ए मैने इतिहास को देखा हैए इतिहास के हर पन्ने का गवाह हू मै। आज का पटना कल का अजिमाबाद देखा है मैनेएचन्द्र्गुप्त और अशोक की बादशाहत देखी है मैने।इसी पाटलीपुत्र मे अनेक राजवन्शो का उद्बभव और पराभव का साक्षी रहा हू मै ।
3000 सालों का इतिहास समेटे पटना आज भी विश्व के मानचित्र पर अपनी मौजूदगी का एहसास कराता है। वक्त के साथ नाम बदला प बादशाहत बदली नही बदली तो वो शहर की तासिर । कुम्हरार के भग्नावेश और गोलघर की स्थापत्य कला आज भी आज भी अपनी गरिमामयी इतिहास की कहानी कहती है। शहीद स्मारक को देखते ही उन सपूतो की कुर्बानिया याद आती हैए याद आती है देश प्रेम के जज्बे की।
शहर के किनारे पावन सलिलाएगंगा की कलकल करती धारा पटना को हरवक्त पवित्रता का एहसास कराती है।वक्त गुजरता रहा शहर बदलता रहाए बिसात वही रही शतरंज के खिलाड़ी बदलते रहे।धर्मों का अदभुत सन्गम शहर की खासियत है। मैने माता के मंदिर की आरती की है। मसजिदो मे नमाज अदा की हैएचर्च की घंटियो मे तो कभी गुरुद्वारे की गुरुवाणी मे लीन हो जाता हू मै।
छ्ठ की आस्था मे डुबा शहर देखा है मैनेएईद की सेवईयो की मिठास चखी है मैने ए होली की हुड़दन्ग देखी है मैने ईशु की पार्थना देखी है मैने एतो गुरुदारे की गुरुवाणी सुनी है मैने।
वक्त ने करवट बदली तो फ़िजाओ ने रंग बदला एहोश और जोश का सगम हुआ तो शहर विकास के पथ पर चल पड़ा।
बड़ी बड़ी गगनचुंबी इमारतेंएचौड़ी होती सड़केंए रोज खुलते नये नये रोजगार के अवसरएतेजी से बढता शिक्षा का दायराएविकास के दौड़ मे कंधे से कंधा मिलाकर चलती महिलायेंएपल.पल बदलती राजनीति मे सता का केंद्र बना हुआ है पटना। ........समय के साथ अपने गौरवशाली इतिहास को समेटे ये शहर बढता रहेगाए बढता रहेगा ।
दीप नारायण दुबे

प्रेम की नगरी में ममता का ब्यपार

कुछ चीजे नासुर बन जाती है। जैसे की गरीबी । ना इससे जल्दी छुटकारा मिलता है ना कोई इस भवसागर को पार कराने वाला मिलता है। ऐसे ही गरीबी ने एक माॅ को इस सागर के बीचो -बीचो लाकर खड़ा कर दिया जहाॅ से किनारा दुर-दुर तक नजर नही आता। ये माॅ भागलपुर की है जिसे हालात ने अपने जिगर के टुकड़े को बेचने के लिए कलेजे पर पत्थर रखना पड़ा। वो भी मात्र सात हजार रूपये कर्ज अदा करने के लिए। धन्य हैं लोग धन्य है अल्पसंख्यक की बात करने वाले राजनेता!
पति को बीमारी ने जकड़ लिया । बच्चे भुख से तड़पने लगे। आखीर पानी पी के कब तक काम चलता । माॅ ने कलेजे पर पत्थर रख लिया। और बच्चे बेचने के लिए घर से बाहर कदम बढ़ा दिया। खबर मीड़िया से निकलकर सरकार के आला अधिकारीयेां तक पहुॅची। पर आउटपुट क्या मिला ? कुछ नही । अधिकारी ने साफ -साफ कह दिया ऐसा कोई प्रावधान नही है कि ऐसे लोगो की मदद की जाए। खुब कर सकते है तो राशन का ब्यवस्था करवा सकते है। इसके बारे में डीएम साहब को बतायेगे। गाॅब के बुद्विजीवीयों ने कहा अरे इसे इस समस्या को हमलोगो से बताना चाहिए। क्या अधिकारी तो दुर रहते है पर गाॅब के ये लोग क्या बिलायत में बसते है जो अपने पड़ोसी के बारे मे जानते तक नही । या फिर वो बड़े लोग जिन्हें हम अपना मसीहा मानते या फिर अपने को अ ल्पसंख्यक का रहनुमा बताते नही थकते । क्या यही सरकार चलाने वाले का असली मुखौटा हैं । जो कहता तो बहुत कुछ है पर हकिकत यही है की सरकार कि योजनाए सिर्फ कागजी होती है। जिनकेबारेमें र्सिफ घोषणाए मात्र रह जाती है। एपीएल , बीपीएल आरक्षरण अल्पसंख्यक, सिर्फ मंच से जनता को संवोधित करने वाले शब्द मात्र है।
अधिकारीयों की आॅखे हमेशा तभी खुलती है जब या तो पिड़ित मर रहा हो या फिर उस स्थिती मे पहुॅच चुका हो। सरकार के दिवालों पर लिखवाये गये विज्ञापन हम भुख से किसी को मरने नही देगे आदी आदी। आखीर ये धटना क्या था पेट भरने के लिए कर्ज जब कर्ज मिलना बंद हो गया तो आदमी क्या खाता । उस बीमार का ईलाज कैसे होता। बच्चे क्या खाते ।सिम्पल सी बात है कुछ घर में बेचनेके लिए अब बचा ही नही था जो बचा था वो उसका लाल था।
गाॅधी का अंतिम आदमी तक योजनाओ का पहुचाने का सपना यही खत्मं ं। ये भागलपुर है यहाॅ तो सिर्फ दंगे होते है। आम आदमी यहाॅ नही रहता । अब बच्चे बिकने लगे है।
क्योकिं ये प्रेम की नगरी है यहाॅ तो प्रेम ही बिकेगा ?चाहे किसी भी रूप में प्रेम बिके!
तरूण ठाकुर

सात साल का अभिभावक

चुल्हे पर खाना ही नही पकता जिन्दगी भी पकती । शायद ये आपको अटपटा सा लगता हो पर ये सौ आना सच है। अगर माॅ ना हो तब क्या होगा । बिहार के सारण जिले में एक एैतिहासिक गाॅव है। जहाॅ भगवान भी भक्त की रक्षा के लिए आये थें पर एक मासुम जो अभी मात्र सात साल का है भगवान उससे खफा क्यों है। माॅ पागल है बाप उनका पेट पालने के लिए मजदुरी करने कांे चला जाता है। घर की सारी जिम्मेवारी सात साल के मासुम पर है। दो अनाथ छोटे भाई है। जो उसके चाचा के लडके है । इस मासुम को इन बेजुबानो के लिए भी हाथ जलाना पड़ता है । इन्हे देख कर किसी को भी दया आ जायेगी । सात साल का तो है पर यह इन अनाथो का नाथ बन गया है।खबर है सोनपुर की जहाॅ गज ग्राह की लड़ाई हुई थी । और भगवान खुंद यहाॅ आ गये थे भक्त के लिए । पर इस अनाथ के लिए गाॅब की वो औरते जो घंटो इनके माॅ और चाची से कप्पे मारा करती थी आज इन बच्चो को देख कर मुॅह फेर लेती है ं । माॅ होती तो शायद ऐसा नही होता। पर इनका तो अब ये आदत हो गया है। खुद से कुएॅ से पानी भरना लकड़ी लाकर चुल्हे पर खाना बनाना अब आदत में सुमार हो गया है। माॅ पागल होकर कही चली गयाी औार चाचा -चाची थे उन्हे भी काल ने निगल लिया।
गाॅब भी संपन्न है। किसी चीज की कमी नही है कोई कमजोर नही है । कमजोर है तो वहाॅ के लोगो का इरादा । और मजबुत है तो मासुम का हौसला । भगवान को आने जरूरत नही है।वह खुद अपने छोटे भाईयों के लिए किसी भगवान से कम हेै क्या?
समय बलवान है आज यह मासुम कमजोर दिख रहा है कल ये मजबुत होगा ं। पर हाॅ हमारे इरादो का क्या जो अब कमजोर हो गया है। ?तो क्या आपके साथ भी कुछ ऐसा है कि माॅ होती तो ऐसा नही होता ?????
बंेचारे पर जिंदगी बोझ बन गयी है। उम्र तो खेलने की है पर एक माॅ का रोल एक बड़े भाई का रोल भी बखुबी निभा रहा है। क्या होगा इसके लडकपन का । दोस्तो के साथ नही खेल पायेगा यह।
तरुण ठाकुर

असली हीरो

कुछ लोग हिरो होते है अपने काम से । एक ऐसे ही हीरो है मोहम्मद इस्लाम ।ये बिहार की राज्यधानी पटना में आटों चलाते है। आपको भी अटपटा लगेगा। पर सच है । ये रियल रिल के हीरो है। आज जहाॅ इमानदारी खत्म होने पर है । वहाॅ आज भी इस्लाम की तरह पाक एक खुदा का नेक बन्दा है मोहम्द इस्लाम।उनके आॅटो में एक लैपटाॅप भुलवश छुट गयी थी पर हमारे हिरो की नियत पर कोई फर्क नही पड़ा । और आखीरकार उसके असली मालिक को ढुढ़ कर लैपटाॅप वापस कर दिया।
अब तो लोग यही कहेगे ईमानदार हो तो इस्लाम की तरह।जब हिरो ने लैपटाॅप अपने घर वालो को दिखाया तो घरवालों ने भी कहा इसे इसके असली मालिक तक पहुॅचा दों । और बैग में पडें विजिटिंग कार्ड पर जब उन्होनें फोन किया तो मालिक का पता लग गया और तब क्या था इस्लाम ने उसके मालिक आशिष जो कि दिल्ली के है। उन्हे वापस कर दिया । आशिष भी खुश क्योकि उसका खोया समान मिल गया और साथ ही साथ एक सच का पता चल गया कि बिहार के लोग ईमानदार होते है। उन्होंने जो बिहार के बारे में सुना था उसके ठीक उल्टा हुआ। येहीरो हमेशा लोगोसे रूबरू होते रहते है। पर इन हीरो को हम तभी पहचाने पाते है जब बो कोइ काम कर दिखाते है। लोगो को पता चलता है अरे ये तो हिरो है।असली हीरो । तबतक हिरो भीड़ मे गुम हो जाता हैं ं। लोगो के जुबान पर उसका काम कहानी के रूप में आने लगता है। कितना ईमानदार है...................
तरुण ठाकुर

हड़ताल पर सरकार

बिहार सरकार हड़ताल पर अब विज्ञापन बाजी करने लगी है। जनता त्ररस्त है।करमचारी
माॅग को ले के डटे हुए है। केहु पिछे हटने को तेयार नही है। सरकार रोना रो रही है
कि हमारे पास जो देने के लिए था सो दे दिये इ कम नही है। आप लोग हड़ताल तोड़
दिजिए काम पर आ जाईयें। बाकि करमचारी कह रहे है कि जो केंद्र से समझवता हुआ
है उ हम लोगो को मिलना चाहिए। हमलोग तभी काम पर आयेगे जब हम लोगो का जो
माॅग है उसको सरकार दे।
अब सरकार ने धकमीयों देनी लगी है। सरकार कह रही है काम पर नही लौटने वाले
ऽ करमचारियों को बरखास्त कर दिया जायेगा। करमचारि इसको ले के गुस्से में हैै
इसका ताजा उदाहरण दरभंगा में करमचारियों का किया उपद्रव हैं । करमचारियों ने
सरकार का पुतला फुका ही साथे साथे पोलियो की भेकसीन को भी फेक दिया।
रोज रोज अखबारो में सरकारी विज्ञापन आ रहे है। हमारी ही सरकार है जो छठे वेतनमान
सबसे पहिले दे दी आप बाकि राज्यो की सरकार को देखीये ।सरकार पर खरचे का बोझ है
सरकार की हालात खराब है जनता निर्णय करे क्या हड़ताल जायेज है । अब बताईये का सरकार
अपने खरचे पर लगाम लगाई है मुख्यमंत्री जो कमपेन चलाये है जनता जर्नाधन के दरवाजे तक
जाना का का उसमें खरचा नही है । जरा सरकार इस पर भी एक विज्ञापन दे के दिखाये किहम जो
गाॅव मे एक दिन रहते है उसमें हेतना रूपईया खरचा है का इ जायज खरचा है जनता बताये? तब ना
होगा सुशासन का असली अर्थ । आप अपना खरचा बताये ही नही करमचारियों के उपर अपना भी खरचा
जोड़ दिये ।
तरूण ठाकुर

महाभारत और पत्रकारिता

कहते है दुनिया का सबसे बड़ा महाकाब्य महाभारत है। जो बेद ब्यास जी की कृति है। इसमें सारी बाते है मनोविज्ञान समाज शास्त्र , अर्थशास्त्र और भी कितने ही विषय!कह नही सकतें। पर एक ऐसा भी विषय है जो अपने आप में सब विषयोे का साार है। वह है राजनितिक शास्त्र। राजनिति में क्या क्या संभव है । हाॅ राजनिति मे कुछ भी असंभव नही है। ये मै नही कहता महाभारत में पढियें । मै एक नये विषय के बारे में थोड़ी जानकारी रखता हॅु वो महाभारत से कम नही है। जितने भी गुण अवगुण आपने महाभारत में पढी होगी वो सारी बाते आपको इस नये विषय मे मिल जायेगे। खैर विद्वान लोग कहते है कि महाभारत में भी या उस समय भी ये विषय था। खैर मैं अभी की बात करता हॅु । ये विषय अपने देश में अभी शुरूआत दौर में हैै । फिर भी लोग उत्सुक है या फिर इससे परेशान है। पर मेरा कोई उद्वेश्य इस विषय को बताने का नही है। आप लोग जानते है सारी दुनिया इनके दखलन्दाजी से परेशान है। इस विषय का जानाकार कभी किसी महाशक्तिशाली ब्यक्ति पर जुतंे चलाता हैं तो कभी इंसानियत का भी परिचय दे देता है। इस विषय में लोग क्या नही सिखते या फिर उन्हें क्या नही सिखाया जाता । हर बाते जो आम आदमी नही जानता वो इन बारिक बातो को भी जानता है। साफ कह दु तो उसे दुसाहसी बना दिया जाता है। चापलुसी से लेकर गंदे राजनिति तक उन्हे बखुबी आते है। शायद ही महाभारत मे ऐसी राजनिति हों ं। इस क्षेत्र में तो पता ही नही चलता कौन किस तरफ से लडता है। या फिर किसका यौद्वा है। महाभारत का क्या हश्र हुआ जग जाहिर है । खैर बो एक युग का ही अंत कर दिया था। ये जो मेरा पत्रकारीता है क्या करेगा । खैर मैं क्या कहु?
हर आदमी किसी ना किसी का पैर खिचनें पर तुला हुआ है। महाभारत में सता थी तो यहाॅ नौकरी या फिर आदमी की चारित्रीक दुर्गुण । वहाॅ भी कभी केंद्र में नारी थी तो यहाॅ भी अब नारी आ गयी है या फिर अपना वही गुण । वहाॅ दुयोधन का बोल बाला था तो यहाॅ भी कोई ना कोई है।मै नाम से कैसे संबोधन कर सकता हॅु मुझे भी डर या मै भी कायर हूॅ ।
एक कहावत है मुॅह मे राम बगल में छुरी ठीक यही बात इस विषय में भी है। कौन क्या करेगा कहना मुश्किल है। ना तो यहाॅ अब कोई संजय है ना तो कोई दुस्साशन कि तरह ईमानदार भाई ।
तरुण ठाकुर