Tuesday, February 3, 2009

प्रेम की नगरी में ममता का ब्यपार

कुछ चीजे नासुर बन जाती है। जैसे की गरीबी । ना इससे जल्दी छुटकारा मिलता है ना कोई इस भवसागर को पार कराने वाला मिलता है। ऐसे ही गरीबी ने एक माॅ को इस सागर के बीचो -बीचो लाकर खड़ा कर दिया जहाॅ से किनारा दुर-दुर तक नजर नही आता। ये माॅ भागलपुर की है जिसे हालात ने अपने जिगर के टुकड़े को बेचने के लिए कलेजे पर पत्थर रखना पड़ा। वो भी मात्र सात हजार रूपये कर्ज अदा करने के लिए। धन्य हैं लोग धन्य है अल्पसंख्यक की बात करने वाले राजनेता!
पति को बीमारी ने जकड़ लिया । बच्चे भुख से तड़पने लगे। आखीर पानी पी के कब तक काम चलता । माॅ ने कलेजे पर पत्थर रख लिया। और बच्चे बेचने के लिए घर से बाहर कदम बढ़ा दिया। खबर मीड़िया से निकलकर सरकार के आला अधिकारीयेां तक पहुॅची। पर आउटपुट क्या मिला ? कुछ नही । अधिकारी ने साफ -साफ कह दिया ऐसा कोई प्रावधान नही है कि ऐसे लोगो की मदद की जाए। खुब कर सकते है तो राशन का ब्यवस्था करवा सकते है। इसके बारे में डीएम साहब को बतायेगे। गाॅब के बुद्विजीवीयों ने कहा अरे इसे इस समस्या को हमलोगो से बताना चाहिए। क्या अधिकारी तो दुर रहते है पर गाॅब के ये लोग क्या बिलायत में बसते है जो अपने पड़ोसी के बारे मे जानते तक नही । या फिर वो बड़े लोग जिन्हें हम अपना मसीहा मानते या फिर अपने को अ ल्पसंख्यक का रहनुमा बताते नही थकते । क्या यही सरकार चलाने वाले का असली मुखौटा हैं । जो कहता तो बहुत कुछ है पर हकिकत यही है की सरकार कि योजनाए सिर्फ कागजी होती है। जिनकेबारेमें र्सिफ घोषणाए मात्र रह जाती है। एपीएल , बीपीएल आरक्षरण अल्पसंख्यक, सिर्फ मंच से जनता को संवोधित करने वाले शब्द मात्र है।
अधिकारीयों की आॅखे हमेशा तभी खुलती है जब या तो पिड़ित मर रहा हो या फिर उस स्थिती मे पहुॅच चुका हो। सरकार के दिवालों पर लिखवाये गये विज्ञापन हम भुख से किसी को मरने नही देगे आदी आदी। आखीर ये धटना क्या था पेट भरने के लिए कर्ज जब कर्ज मिलना बंद हो गया तो आदमी क्या खाता । उस बीमार का ईलाज कैसे होता। बच्चे क्या खाते ।सिम्पल सी बात है कुछ घर में बेचनेके लिए अब बचा ही नही था जो बचा था वो उसका लाल था।
गाॅधी का अंतिम आदमी तक योजनाओ का पहुचाने का सपना यही खत्मं ं। ये भागलपुर है यहाॅ तो सिर्फ दंगे होते है। आम आदमी यहाॅ नही रहता । अब बच्चे बिकने लगे है।
क्योकिं ये प्रेम की नगरी है यहाॅ तो प्रेम ही बिकेगा ?चाहे किसी भी रूप में प्रेम बिके!
तरूण ठाकुर

No comments: