कहते है दुनिया का सबसे बड़ा महाकाब्य महाभारत है। जो बेद ब्यास जी की कृति है। इसमें सारी बाते है मनोविज्ञान समाज शास्त्र , अर्थशास्त्र और भी कितने ही विषय!कह नही सकतें। पर एक ऐसा भी विषय है जो अपने आप में सब विषयोे का साार है। वह है राजनितिक शास्त्र। राजनिति में क्या क्या संभव है । हाॅ राजनिति मे कुछ भी असंभव नही है। ये मै नही कहता महाभारत में पढियें । मै एक नये विषय के बारे में थोड़ी जानकारी रखता हॅु वो महाभारत से कम नही है। जितने भी गुण अवगुण आपने महाभारत में पढी होगी वो सारी बाते आपको इस नये विषय मे मिल जायेगे। खैर विद्वान लोग कहते है कि महाभारत में भी या उस समय भी ये विषय था। खैर मैं अभी की बात करता हॅु । ये विषय अपने देश में अभी शुरूआत दौर में हैै । फिर भी लोग उत्सुक है या फिर इससे परेशान है। पर मेरा कोई उद्वेश्य इस विषय को बताने का नही है। आप लोग जानते है सारी दुनिया इनके दखलन्दाजी से परेशान है। इस विषय का जानाकार कभी किसी महाशक्तिशाली ब्यक्ति पर जुतंे चलाता हैं तो कभी इंसानियत का भी परिचय दे देता है। इस विषय में लोग क्या नही सिखते या फिर उन्हें क्या नही सिखाया जाता । हर बाते जो आम आदमी नही जानता वो इन बारिक बातो को भी जानता है। साफ कह दु तो उसे दुसाहसी बना दिया जाता है। चापलुसी से लेकर गंदे राजनिति तक उन्हे बखुबी आते है। शायद ही महाभारत मे ऐसी राजनिति हों ं। इस क्षेत्र में तो पता ही नही चलता कौन किस तरफ से लडता है। या फिर किसका यौद्वा है। महाभारत का क्या हश्र हुआ जग जाहिर है । खैर बो एक युग का ही अंत कर दिया था। ये जो मेरा पत्रकारीता है क्या करेगा । खैर मैं क्या कहु?
हर आदमी किसी ना किसी का पैर खिचनें पर तुला हुआ है। महाभारत में सता थी तो यहाॅ नौकरी या फिर आदमी की चारित्रीक दुर्गुण । वहाॅ भी कभी केंद्र में नारी थी तो यहाॅ भी अब नारी आ गयी है या फिर अपना वही गुण । वहाॅ दुयोधन का बोल बाला था तो यहाॅ भी कोई ना कोई है।मै नाम से कैसे संबोधन कर सकता हॅु मुझे भी डर या मै भी कायर हूॅ ।
एक कहावत है मुॅह मे राम बगल में छुरी ठीक यही बात इस विषय में भी है। कौन क्या करेगा कहना मुश्किल है। ना तो यहाॅ अब कोई संजय है ना तो कोई दुस्साशन कि तरह ईमानदार भाई ।
हर आदमी किसी ना किसी का पैर खिचनें पर तुला हुआ है। महाभारत में सता थी तो यहाॅ नौकरी या फिर आदमी की चारित्रीक दुर्गुण । वहाॅ भी कभी केंद्र में नारी थी तो यहाॅ भी अब नारी आ गयी है या फिर अपना वही गुण । वहाॅ दुयोधन का बोल बाला था तो यहाॅ भी कोई ना कोई है।मै नाम से कैसे संबोधन कर सकता हॅु मुझे भी डर या मै भी कायर हूॅ ।
एक कहावत है मुॅह मे राम बगल में छुरी ठीक यही बात इस विषय में भी है। कौन क्या करेगा कहना मुश्किल है। ना तो यहाॅ अब कोई संजय है ना तो कोई दुस्साशन कि तरह ईमानदार भाई ।
तरुण ठाकुर
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