Sunday, September 14, 2008

हद हो गई यार

मेरा मकसद किसी को गाली देना नही है। लेकीन क्या करु जब भी कोई सिरियल बलास्ट होता है तो मरता तो आम आदमी ही है।लड़ाई किसी कि भी हो पिसता आम आदमी ही है।कल दिल्ली मे जो ब्लास्ट हुये उससे ये एक बार फिर सिद्ध हो गया की हमारी सरकार,बेकार है। चुल्लु भर पानी मे भी ये डुब मरने लायक नही है। पता नही
और कितने लोग मरेगे तब सरकार आतकवाद से भिड़ेगी।
बिहार मे एक कहावत है,बाप परेशान है बेटा से और देश परेशान है नेता से। जो बेचारे इस ब्लास्ट मे मारे गये उनकी सुध सरकार को नही है। सरकार सिर्फ़ अपना कोरम पुरा करने मे लगी है। हमेशा की तरह वही घोषणाएँ मरने वाले को पाँच लाख,घायलो को एक लाख फ़लाना, फ़लाना ।
आज के दैनिक जागरण मे जब मैने मनमोहन सिह का बयान पढा तो दग रह गया । उनहोने कहा है की "आतकवाद से लड़ाई मे किसी समुदाय को निशाना नही बनाया जाये"।ये बयान अपने आप मे कई अर्थ समेटे हुये है। इससे जनता मे असुरक्षा की भावना आती है। खैर मै तो लगभग चार साल से भुल चुका हु की हमारे देश मे प्रधानमंत्री भी एक पद है।
कभी कभी जो काम हम जिंदगी मे नही कर पाते है वो हमारी फ़िल्मो मे हो जाता है। फ़िल्म ए वेड्नस डे मे जो काम नसिरुदिन शाह ने किया है वो सही है,आखिर आम आदमी कब तक सहेगा । हद हो ग़ई कभी हम बरसात मे फ़सते है तो कभी बाढ मे कभी ब्लास्ट मे ……………………………॥कुछ तो शर्म करो हमारे आका।……………………………This whole bloody system is fold..

Monday, September 8, 2008

बाढ़ का कहर

गलती किसकी ?
18,अगस्त को बिहार मे टुटे बांध ने जो कहर बरपाया उससे लोग अभी तक उबर नही पाये है,और शायद जिदगी भर उबर भी न सके। न जाने कितने लोगो ने जिदा जल समाधी ले ली,लाखो लोग बेघर हो गए,छोटे छोटे बच्चे जो सयोग से जिदा बच गये है,उनकी बचपन,मासुमीयत सब मुरझा गई है। चारो तरफ़ हहाकार मचा हुआ है।……………………लेकीन हम क्या कर रहे है।
नेता रजनिती कर रहे है,गिद्ध की तरह हेलिकाप्टर से मँडरा रहे है,देख रहे है की इस स्थिति का कैसे और कितना लाभ उठाया जा सकता है।
मिडिया के भाई छाप रहे है,दिखा रहे है,एक ही मिडिया हाउस से कई भाई पहुचे हुए है,एक से एक एस्कुलिसिव,स्पेशल और मानविय एंगल की स्टोरी दे रहे है।सब धकाधक बिक रही है। जैसे ही उनकी फ़ोटु कही टेलिविजन या अखबार मे दिख रही है,तड़ातड़ फ़ोन कर के कह रहे है,अरे भाई देखिए हम दिख रहे है। ………………लेकीन अभी तक कोई भी पतरकार(बिहारी लैग्वेज) पानी की धारा मे उतरा नही है।
और आम आदमी खाली गप मार रहा है,बाढ से जुड़ी खबरों का वो चाऊमिन बना-बना कर खा रहा है,जैसे ही कोई नई खबर वो सुनता है तो तुरन्त उसे चटनी के रुप मे इस्तेमाल करता है।
ये लिख्ने तक भागलपुर के पास भी एक बाँध टुट चुका था।