Friday, January 30, 2009

गिद्वो से बचके

गिद्द्यो के नजर से शायद ही कोई बच पाये । दुर आसमान में उड़ते रहते है। पर नजर धरती पर बिखरी लाश पर ही रहती है।कुछ ऐसा ही होता हमारी दुनिया में भी । गिद्य होते है पर मानव मे महामानव के रूप में । सब तो साधु समझते है । लेकिन अन्दर कुछ और होता है। साले धरती पर पड़ी लाशो पर उनकी नजर ऐसे रहती है कि गिद्व भी शरमाजायें । गिद्व तो ठीक लाशो के उपर उड़ते है पर ये गिद्व ना तो लाशो के करीब आते है और ना किसी के कानो कानो खबर होती है । लाशे होती है हमारे यहाॅ आयी नइ्र्र तितिलियाॅ । जो आसमान छुना चाहती है बिन उडें । लेकिन आसमान छुनेसे पहले ही उनके पंख झुलस जाते है। और हमारे यहाॅ जो गिद्व है उनका ध्यान तो हमेशा लाशो पर लगा रहता है।
लाशे भी ख्ुाद व खुद गिद्वो के मॅुह मे जाने को आतुर रहती है। ब्याकुल रहती है कि कुछ मेरा भला हो जाये । कौन जानेगा कि मै किस गिद्व के मुॅह से निकलकर आ रही हॅु।और बन जाती है इन गिद्वो का निवाला।कही कोइ परेशानी नही।बस गिद्व की गाडी में या फिर किसी होटल में । निवाला भी खुद जब राजी है तो क्या कहा जायें। ऐसे ही होते रहता है उन तितिलियो का शिकार । फिर भी नही थमता है गिद्व बाजार में तितिलियो का जाना।
बाबुजी धीरे चलना बडी धोखे है इस राह में ।पर इन्हे तो बस आसमान छुना हर कीमत पर। कितनी गाडीयो का पिछला सीट गवाह बन चुका है। कहने की जरूरत नही कौन और क्या?बस डाइवर साहेब को पाने लाने जाना पडता और फिर वही गिद्व तितली युद्व शुरू।
ये गिद्व कोइ और नही पत्रकारिता के हिरो, और तितलीयाॅ वही जो आती सज सवर के कहर बरपाने खुबसुरत लडकियाॅ।और होता है उनका आमना -सामना उस गुमनाम गली से ।
अमितेश प्रसुन

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