सरकार के पास पैसे नही है । कर्मचारी सड़क पर उतर आये है। हड़ताल जारी है । जनता से संर्पक साधने के लिए लगातार विज्ञापन वाजी जारी है। सरकार कह रही है हड़ताल अवैध है। कर्मचारी माॅगो को ले अड़िग है। सरकार के रवैये से कर्मचारी हमेशा हर बार रूवरू होंते रहे है । ये पहला हड़ताल नही है । इससे पहले भी हड़ताले होती रही हैं। सरकार झुकती रही है। सरकार का खजाना खाली है। विकाश या फिर हड़ताल का नारा देकर सरकार जनता से विज्ञापन के द्वारा जुड़ना चाह रही है। पर सरकार ये नही जानती क्या कि कर्मचारी भी जनता के बीच से ही आते हैै।वो भी विकाश चाहते है। अगर सचमुच सरकार विकाश चाहती है तो अपने उपर लगाम लगायें। महगाई ना बढ़ने दे । अराजकता रोके। घुसखोरी जो चरम पर है उसे कम करे । योजनाओं को सही मायने में आम जन तक पहुचाये। राजनेता अपने खर्चे में कमी लाये। तो क्या जरूरत पड़ेगी विज्ञापन देकर जनता से जुड़ना ही नही पड़ता जनता तो राजनेताओं को हाथो -हाथ लेती। हड़ताले नही होती। विकाश करने के लिए किसी सुशासन की सरकार की जरूरत नही पड़ती। सुशासन जनता ला देती । तो फिर शिर्ष पर बैठे राजनेता ऐसे विज्ञापन से तो बचे। उसी पैसे को विकास के कामो में लगाये।
गाॅधी ने एक बात कही थी अगर अंतिम आदमी तक तुम अपने आप को पाते हो तो मान लिया जायेगा तुम सही दिशा में काम कर रहे हो। क्या आज ये हो रहा है? ऐसी कोई योजना बची है जिसमें राजनेता से लेकर आला अधिकारियों का कमिशन ना बधा हो। पर ये भी सच है कि आज तक किसी बडे नेता या अधिकारी को सजा हुई हो । चाहे वो सरकार का अंग हो या ना हों । पर कृपा जरूर बनी रहती है तभी तो एक आज तक किसी को किसी मामले में सजा नही हुई। नई सरकार आती पहले वाले फाइलो पर से धुल हटाती है। लोग समझने लगते है सरकार काम कर रही है अब तो पक्का नेताओ को कानून का पाठ याद हो जायेगा। कुछ दिनो तक लोगो में ये चर्चा आम होता है । फिर वही सरकार उसी फाइल को धुल पडने के लिए खुले मेंछोड़ देती है। जब बिहार में सुशासन बाबु की सरकार आयी तो लालु मामले में कुछ ऐसा ही हुआ अब तो इस मामले की खबर भी अखबारो में नही आती। त्वरित न्याय प्रणाली फास्टटृैक र्कोट के कुछ मायने नचर नही आतें ।
ये सौ आने सच है।
जनता का दरबार क्या है ? क्या वास्तव में जनता का दरबार है ? यहाॅ कें दरबार का राजा जनता है या फिर राजा के दरवार में जनता आती है। क्या जनता के लिए राजा खडा होता है
क्या जनता को सम्मान दी जाती है। हर सवाल का जबाब जनता खुद जानती है। क्या जनता दरवार का चोला लगा लेने से जनता का कल्याण हो जायेगा। विकास के लिए दरबार की जरूरत पड़ गयी ! सुशासन का मतलब क्या यही है? क्या सुशासन की नई परिभाषा यही है! जहाॅ पर सरकार का ही एक अंग काम ठीक ढंग से नही कर रहा है और उसके लिए राजा को दरवार लगाने की जरूरत पड़ गयी । मतलब साफ है काम ठीक ढंग से नही हो रहा है। कर्मचारी और सरकार में अच्छी ताल-मेल नही है। जनता के लिए कर्मचारी काम नही कर रहे है तभी तो दुर दराज से लोग फरियाद लेकर राजा के दरबार मेआते है। जनता का दरबार राजा का एक प्रोपगेंडा मात्र है । जहाॅ राजा जनता को धोखा दे रहा है। उसका कोई ना उद्वेश्य है जो वह जनता से साधना चाहता है। मतलब साफ है ,
राजा अब जनता के गाॅव जा रहा है । उसके ताम-झाम के लिए आला अधिकारी लगे हुए है।जनता भी खुश है। राजा उसके गाॅव आ रहा हैं। गाॅव मे होगा । जो सड़के अब तक नही बन पायी थी वो बन जायेगी । पर ये ख्वाव अधूरे रह जायेगे। जनता नही जानती ये राजा का चुनावी कम्पेन मात्र है।
गाॅधी ने एक बात कही थी अगर अंतिम आदमी तक तुम अपने आप को पाते हो तो मान लिया जायेगा तुम सही दिशा में काम कर रहे हो। क्या आज ये हो रहा है? ऐसी कोई योजना बची है जिसमें राजनेता से लेकर आला अधिकारियों का कमिशन ना बधा हो। पर ये भी सच है कि आज तक किसी बडे नेता या अधिकारी को सजा हुई हो । चाहे वो सरकार का अंग हो या ना हों । पर कृपा जरूर बनी रहती है तभी तो एक आज तक किसी को किसी मामले में सजा नही हुई। नई सरकार आती पहले वाले फाइलो पर से धुल हटाती है। लोग समझने लगते है सरकार काम कर रही है अब तो पक्का नेताओ को कानून का पाठ याद हो जायेगा। कुछ दिनो तक लोगो में ये चर्चा आम होता है । फिर वही सरकार उसी फाइल को धुल पडने के लिए खुले मेंछोड़ देती है। जब बिहार में सुशासन बाबु की सरकार आयी तो लालु मामले में कुछ ऐसा ही हुआ अब तो इस मामले की खबर भी अखबारो में नही आती। त्वरित न्याय प्रणाली फास्टटृैक र्कोट के कुछ मायने नचर नही आतें ।
ये सौ आने सच है।
जनता का दरबार क्या है ? क्या वास्तव में जनता का दरबार है ? यहाॅ कें दरबार का राजा जनता है या फिर राजा के दरवार में जनता आती है। क्या जनता के लिए राजा खडा होता है
क्या जनता को सम्मान दी जाती है। हर सवाल का जबाब जनता खुद जानती है। क्या जनता दरवार का चोला लगा लेने से जनता का कल्याण हो जायेगा। विकास के लिए दरबार की जरूरत पड़ गयी ! सुशासन का मतलब क्या यही है? क्या सुशासन की नई परिभाषा यही है! जहाॅ पर सरकार का ही एक अंग काम ठीक ढंग से नही कर रहा है और उसके लिए राजा को दरवार लगाने की जरूरत पड़ गयी । मतलब साफ है काम ठीक ढंग से नही हो रहा है। कर्मचारी और सरकार में अच्छी ताल-मेल नही है। जनता के लिए कर्मचारी काम नही कर रहे है तभी तो दुर दराज से लोग फरियाद लेकर राजा के दरबार मेआते है। जनता का दरबार राजा का एक प्रोपगेंडा मात्र है । जहाॅ राजा जनता को धोखा दे रहा है। उसका कोई ना उद्वेश्य है जो वह जनता से साधना चाहता है। मतलब साफ है ,
राजा अब जनता के गाॅव जा रहा है । उसके ताम-झाम के लिए आला अधिकारी लगे हुए है।जनता भी खुश है। राजा उसके गाॅव आ रहा हैं। गाॅव मे होगा । जो सड़के अब तक नही बन पायी थी वो बन जायेगी । पर ये ख्वाव अधूरे रह जायेगे। जनता नही जानती ये राजा का चुनावी कम्पेन मात्र है।
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