Wednesday, February 4, 2009

चैनल में रहना है ?होटल में मिलो !


नये चैनलो की बाढ़ आ गयी है। देश में एक नया चैनल आया है, एक नये भाषा में काफी हिट रहा है, यह भाषा। इससे प्रेरित होके इसी भाषा में एक नया चैनल आया है। वो काफी चल रहा है। इस नये चैनल में क्या गुल खिला यही बात आपलोगो को बता रहा हॅु। आप जानते है कि हम खुल के कोई बात नही कहते ।मन ही मन में आप खुदे समझ जाईयेगा। पर है मजेदार ।
अर्थशास्त्र में जरा कमजोर है। मंदी की मार क्या है खुदे समझ लिजिएगा क्या हो रहा है इस बहाने ये आप जानते है। खैर छटनी तो आप लोग जानते ही है।पर हम एक नया बात बता रहा हैं ं । इस बहाने क्या हो रहा है। हम ये भी नही बतायेगे कि होटल में सबको बुलाया जाता है। मिंटिग के बहाने और ये भी नही कहेगे कि लड़कियों को ही सिर्फ बुलाया गया था और ये भी नही बतायेगे कि दिल्ली के एक होटल में । खैर बहुते बता दिये।
पर एक बात जरूर बता देते है छापा पड़ा था उस होटल में । चैनल वाला मतलब कि एक बड़का अधिकारी पकड़ा गया था । पर कुछे समय में छुट गया था ये बताने कि जरूरत नही हैकि पैरबी था इसलिए ऐसा हुआ। अब बात साफ-साफ की रहना ,है तो होटल में मिलना पड़ेगा।
पर अब फैसला आपके हाथ में है। का इसब सही बात है। कहाॅ जा रहा है पत्रकारिता ?किसका अड्डा बनता जा रहा है। खैर पत्रकारिता एक ऐसा बच्चा है जो अभी अपने देश में अभी नवजात अवस्था में है। पर समय से पहिले ही जवान हो के खत्म होने के कागार पर है। चलते चलते एक बात कह देता हॅु घबराइये मत इ चैनलो को आप ही सबक सिखा सकते है!

अमितेश प्रसून

Tuesday, February 3, 2009

बाढ़ का मोची बना शिक्षक !

रामशशि एक आम आदमी एहसरत थी पढने की कुछ करने की पर हैसियत ने उम्मीदों का दामन छोड़ दिया ध् भुख के सामने तमन्नाएं उडान भर ना सकी ।
मैट्रिक के बाद पेशे से जुड़ना परा। आज वो एक मोची है। दुर जो वो दुकान हैए वो रामशशी की है अक्सर वहाँ लोग अपने फ़टे जुते चप्पल की मरम्मत कराने के लिए रुकते है। थोड़ा करीब गया और करीब गया तो रामशशी की वो दुकान पाठशाला बनती दिखी समझने को कुछ नही था ये तो बस रामशशी की वो धुन्धली सी तस्वीर जिसमे वो रग भरने की कोशीश कर रहा है। दिल की ये आरजु है की दुसरा रामशशि न बने ।
छुटकी को गणित सिखाते है तो बीच बीच मे अलका को पहाड़ा भी पढाते भी हैए छोटु पिछे शरारत करता है तो एक बार निगरानी भी करते है। मास्टर साहब जैसे नही लगते पर ये इनकी पाठशाला है और ये इनके मास्टर साहब है। इनसे इनको उम्मीद बस इतनी की कल ये कुछ बने और जब भी मिले तो गुरु को सलाम करे।
कल तक सोनी फ़िर मोहन उसके बाद चन्चल फ़िर रेखाए बच्चे आते गये सड़क किनारे पढ्ने पढाने का दोड़ शुरु हुआ। रामाशीश मे पढाने की इच्छा शक्ति हैए बच्चो मे पढ्ने की ललक है।
बढ्ती तदात सरकार को सोचने पर मजबुर करती है कि बच्चो को स्कुल चाहिएएपढाई चाहिए ना कि खिचड़ी की खुराक ।
क्या आपने कभी सोचा है ! बाढ़ पटना जिला का एक शहर है।
अमितेश प्रसून

पटना एक नजर !

मै समय हू। मैने हर पल को जिया है ए मैने इतिहास को देखा हैए इतिहास के हर पन्ने का गवाह हू मै। आज का पटना कल का अजिमाबाद देखा है मैनेएचन्द्र्गुप्त और अशोक की बादशाहत देखी है मैने।इसी पाटलीपुत्र मे अनेक राजवन्शो का उद्बभव और पराभव का साक्षी रहा हू मै ।
3000 सालों का इतिहास समेटे पटना आज भी विश्व के मानचित्र पर अपनी मौजूदगी का एहसास कराता है। वक्त के साथ नाम बदला प बादशाहत बदली नही बदली तो वो शहर की तासिर । कुम्हरार के भग्नावेश और गोलघर की स्थापत्य कला आज भी आज भी अपनी गरिमामयी इतिहास की कहानी कहती है। शहीद स्मारक को देखते ही उन सपूतो की कुर्बानिया याद आती हैए याद आती है देश प्रेम के जज्बे की।
शहर के किनारे पावन सलिलाएगंगा की कलकल करती धारा पटना को हरवक्त पवित्रता का एहसास कराती है।वक्त गुजरता रहा शहर बदलता रहाए बिसात वही रही शतरंज के खिलाड़ी बदलते रहे।धर्मों का अदभुत सन्गम शहर की खासियत है। मैने माता के मंदिर की आरती की है। मसजिदो मे नमाज अदा की हैएचर्च की घंटियो मे तो कभी गुरुद्वारे की गुरुवाणी मे लीन हो जाता हू मै।
छ्ठ की आस्था मे डुबा शहर देखा है मैनेएईद की सेवईयो की मिठास चखी है मैने ए होली की हुड़दन्ग देखी है मैने ईशु की पार्थना देखी है मैने एतो गुरुदारे की गुरुवाणी सुनी है मैने।
वक्त ने करवट बदली तो फ़िजाओ ने रंग बदला एहोश और जोश का सगम हुआ तो शहर विकास के पथ पर चल पड़ा।
बड़ी बड़ी गगनचुंबी इमारतेंएचौड़ी होती सड़केंए रोज खुलते नये नये रोजगार के अवसरएतेजी से बढता शिक्षा का दायराएविकास के दौड़ मे कंधे से कंधा मिलाकर चलती महिलायेंएपल.पल बदलती राजनीति मे सता का केंद्र बना हुआ है पटना। ........समय के साथ अपने गौरवशाली इतिहास को समेटे ये शहर बढता रहेगाए बढता रहेगा ।
दीप नारायण दुबे

प्रेम की नगरी में ममता का ब्यपार

कुछ चीजे नासुर बन जाती है। जैसे की गरीबी । ना इससे जल्दी छुटकारा मिलता है ना कोई इस भवसागर को पार कराने वाला मिलता है। ऐसे ही गरीबी ने एक माॅ को इस सागर के बीचो -बीचो लाकर खड़ा कर दिया जहाॅ से किनारा दुर-दुर तक नजर नही आता। ये माॅ भागलपुर की है जिसे हालात ने अपने जिगर के टुकड़े को बेचने के लिए कलेजे पर पत्थर रखना पड़ा। वो भी मात्र सात हजार रूपये कर्ज अदा करने के लिए। धन्य हैं लोग धन्य है अल्पसंख्यक की बात करने वाले राजनेता!
पति को बीमारी ने जकड़ लिया । बच्चे भुख से तड़पने लगे। आखीर पानी पी के कब तक काम चलता । माॅ ने कलेजे पर पत्थर रख लिया। और बच्चे बेचने के लिए घर से बाहर कदम बढ़ा दिया। खबर मीड़िया से निकलकर सरकार के आला अधिकारीयेां तक पहुॅची। पर आउटपुट क्या मिला ? कुछ नही । अधिकारी ने साफ -साफ कह दिया ऐसा कोई प्रावधान नही है कि ऐसे लोगो की मदद की जाए। खुब कर सकते है तो राशन का ब्यवस्था करवा सकते है। इसके बारे में डीएम साहब को बतायेगे। गाॅब के बुद्विजीवीयों ने कहा अरे इसे इस समस्या को हमलोगो से बताना चाहिए। क्या अधिकारी तो दुर रहते है पर गाॅब के ये लोग क्या बिलायत में बसते है जो अपने पड़ोसी के बारे मे जानते तक नही । या फिर वो बड़े लोग जिन्हें हम अपना मसीहा मानते या फिर अपने को अ ल्पसंख्यक का रहनुमा बताते नही थकते । क्या यही सरकार चलाने वाले का असली मुखौटा हैं । जो कहता तो बहुत कुछ है पर हकिकत यही है की सरकार कि योजनाए सिर्फ कागजी होती है। जिनकेबारेमें र्सिफ घोषणाए मात्र रह जाती है। एपीएल , बीपीएल आरक्षरण अल्पसंख्यक, सिर्फ मंच से जनता को संवोधित करने वाले शब्द मात्र है।
अधिकारीयों की आॅखे हमेशा तभी खुलती है जब या तो पिड़ित मर रहा हो या फिर उस स्थिती मे पहुॅच चुका हो। सरकार के दिवालों पर लिखवाये गये विज्ञापन हम भुख से किसी को मरने नही देगे आदी आदी। आखीर ये धटना क्या था पेट भरने के लिए कर्ज जब कर्ज मिलना बंद हो गया तो आदमी क्या खाता । उस बीमार का ईलाज कैसे होता। बच्चे क्या खाते ।सिम्पल सी बात है कुछ घर में बेचनेके लिए अब बचा ही नही था जो बचा था वो उसका लाल था।
गाॅधी का अंतिम आदमी तक योजनाओ का पहुचाने का सपना यही खत्मं ं। ये भागलपुर है यहाॅ तो सिर्फ दंगे होते है। आम आदमी यहाॅ नही रहता । अब बच्चे बिकने लगे है।
क्योकिं ये प्रेम की नगरी है यहाॅ तो प्रेम ही बिकेगा ?चाहे किसी भी रूप में प्रेम बिके!
तरूण ठाकुर

सात साल का अभिभावक

चुल्हे पर खाना ही नही पकता जिन्दगी भी पकती । शायद ये आपको अटपटा सा लगता हो पर ये सौ आना सच है। अगर माॅ ना हो तब क्या होगा । बिहार के सारण जिले में एक एैतिहासिक गाॅव है। जहाॅ भगवान भी भक्त की रक्षा के लिए आये थें पर एक मासुम जो अभी मात्र सात साल का है भगवान उससे खफा क्यों है। माॅ पागल है बाप उनका पेट पालने के लिए मजदुरी करने कांे चला जाता है। घर की सारी जिम्मेवारी सात साल के मासुम पर है। दो अनाथ छोटे भाई है। जो उसके चाचा के लडके है । इस मासुम को इन बेजुबानो के लिए भी हाथ जलाना पड़ता है । इन्हे देख कर किसी को भी दया आ जायेगी । सात साल का तो है पर यह इन अनाथो का नाथ बन गया है।खबर है सोनपुर की जहाॅ गज ग्राह की लड़ाई हुई थी । और भगवान खुंद यहाॅ आ गये थे भक्त के लिए । पर इस अनाथ के लिए गाॅब की वो औरते जो घंटो इनके माॅ और चाची से कप्पे मारा करती थी आज इन बच्चो को देख कर मुॅह फेर लेती है ं । माॅ होती तो शायद ऐसा नही होता। पर इनका तो अब ये आदत हो गया है। खुद से कुएॅ से पानी भरना लकड़ी लाकर चुल्हे पर खाना बनाना अब आदत में सुमार हो गया है। माॅ पागल होकर कही चली गयाी औार चाचा -चाची थे उन्हे भी काल ने निगल लिया।
गाॅब भी संपन्न है। किसी चीज की कमी नही है कोई कमजोर नही है । कमजोर है तो वहाॅ के लोगो का इरादा । और मजबुत है तो मासुम का हौसला । भगवान को आने जरूरत नही है।वह खुद अपने छोटे भाईयों के लिए किसी भगवान से कम हेै क्या?
समय बलवान है आज यह मासुम कमजोर दिख रहा है कल ये मजबुत होगा ं। पर हाॅ हमारे इरादो का क्या जो अब कमजोर हो गया है। ?तो क्या आपके साथ भी कुछ ऐसा है कि माॅ होती तो ऐसा नही होता ?????
बंेचारे पर जिंदगी बोझ बन गयी है। उम्र तो खेलने की है पर एक माॅ का रोल एक बड़े भाई का रोल भी बखुबी निभा रहा है। क्या होगा इसके लडकपन का । दोस्तो के साथ नही खेल पायेगा यह।
तरुण ठाकुर

असली हीरो

कुछ लोग हिरो होते है अपने काम से । एक ऐसे ही हीरो है मोहम्मद इस्लाम ।ये बिहार की राज्यधानी पटना में आटों चलाते है। आपको भी अटपटा लगेगा। पर सच है । ये रियल रिल के हीरो है। आज जहाॅ इमानदारी खत्म होने पर है । वहाॅ आज भी इस्लाम की तरह पाक एक खुदा का नेक बन्दा है मोहम्द इस्लाम।उनके आॅटो में एक लैपटाॅप भुलवश छुट गयी थी पर हमारे हिरो की नियत पर कोई फर्क नही पड़ा । और आखीरकार उसके असली मालिक को ढुढ़ कर लैपटाॅप वापस कर दिया।
अब तो लोग यही कहेगे ईमानदार हो तो इस्लाम की तरह।जब हिरो ने लैपटाॅप अपने घर वालो को दिखाया तो घरवालों ने भी कहा इसे इसके असली मालिक तक पहुॅचा दों । और बैग में पडें विजिटिंग कार्ड पर जब उन्होनें फोन किया तो मालिक का पता लग गया और तब क्या था इस्लाम ने उसके मालिक आशिष जो कि दिल्ली के है। उन्हे वापस कर दिया । आशिष भी खुश क्योकि उसका खोया समान मिल गया और साथ ही साथ एक सच का पता चल गया कि बिहार के लोग ईमानदार होते है। उन्होंने जो बिहार के बारे में सुना था उसके ठीक उल्टा हुआ। येहीरो हमेशा लोगोसे रूबरू होते रहते है। पर इन हीरो को हम तभी पहचाने पाते है जब बो कोइ काम कर दिखाते है। लोगो को पता चलता है अरे ये तो हिरो है।असली हीरो । तबतक हिरो भीड़ मे गुम हो जाता हैं ं। लोगो के जुबान पर उसका काम कहानी के रूप में आने लगता है। कितना ईमानदार है...................
तरुण ठाकुर

हड़ताल पर सरकार

बिहार सरकार हड़ताल पर अब विज्ञापन बाजी करने लगी है। जनता त्ररस्त है।करमचारी
माॅग को ले के डटे हुए है। केहु पिछे हटने को तेयार नही है। सरकार रोना रो रही है
कि हमारे पास जो देने के लिए था सो दे दिये इ कम नही है। आप लोग हड़ताल तोड़
दिजिए काम पर आ जाईयें। बाकि करमचारी कह रहे है कि जो केंद्र से समझवता हुआ
है उ हम लोगो को मिलना चाहिए। हमलोग तभी काम पर आयेगे जब हम लोगो का जो
माॅग है उसको सरकार दे।
अब सरकार ने धकमीयों देनी लगी है। सरकार कह रही है काम पर नही लौटने वाले
ऽ करमचारियों को बरखास्त कर दिया जायेगा। करमचारि इसको ले के गुस्से में हैै
इसका ताजा उदाहरण दरभंगा में करमचारियों का किया उपद्रव हैं । करमचारियों ने
सरकार का पुतला फुका ही साथे साथे पोलियो की भेकसीन को भी फेक दिया।
रोज रोज अखबारो में सरकारी विज्ञापन आ रहे है। हमारी ही सरकार है जो छठे वेतनमान
सबसे पहिले दे दी आप बाकि राज्यो की सरकार को देखीये ।सरकार पर खरचे का बोझ है
सरकार की हालात खराब है जनता निर्णय करे क्या हड़ताल जायेज है । अब बताईये का सरकार
अपने खरचे पर लगाम लगाई है मुख्यमंत्री जो कमपेन चलाये है जनता जर्नाधन के दरवाजे तक
जाना का का उसमें खरचा नही है । जरा सरकार इस पर भी एक विज्ञापन दे के दिखाये किहम जो
गाॅव मे एक दिन रहते है उसमें हेतना रूपईया खरचा है का इ जायज खरचा है जनता बताये? तब ना
होगा सुशासन का असली अर्थ । आप अपना खरचा बताये ही नही करमचारियों के उपर अपना भी खरचा
जोड़ दिये ।
तरूण ठाकुर

महाभारत और पत्रकारिता

कहते है दुनिया का सबसे बड़ा महाकाब्य महाभारत है। जो बेद ब्यास जी की कृति है। इसमें सारी बाते है मनोविज्ञान समाज शास्त्र , अर्थशास्त्र और भी कितने ही विषय!कह नही सकतें। पर एक ऐसा भी विषय है जो अपने आप में सब विषयोे का साार है। वह है राजनितिक शास्त्र। राजनिति में क्या क्या संभव है । हाॅ राजनिति मे कुछ भी असंभव नही है। ये मै नही कहता महाभारत में पढियें । मै एक नये विषय के बारे में थोड़ी जानकारी रखता हॅु वो महाभारत से कम नही है। जितने भी गुण अवगुण आपने महाभारत में पढी होगी वो सारी बाते आपको इस नये विषय मे मिल जायेगे। खैर विद्वान लोग कहते है कि महाभारत में भी या उस समय भी ये विषय था। खैर मैं अभी की बात करता हॅु । ये विषय अपने देश में अभी शुरूआत दौर में हैै । फिर भी लोग उत्सुक है या फिर इससे परेशान है। पर मेरा कोई उद्वेश्य इस विषय को बताने का नही है। आप लोग जानते है सारी दुनिया इनके दखलन्दाजी से परेशान है। इस विषय का जानाकार कभी किसी महाशक्तिशाली ब्यक्ति पर जुतंे चलाता हैं तो कभी इंसानियत का भी परिचय दे देता है। इस विषय में लोग क्या नही सिखते या फिर उन्हें क्या नही सिखाया जाता । हर बाते जो आम आदमी नही जानता वो इन बारिक बातो को भी जानता है। साफ कह दु तो उसे दुसाहसी बना दिया जाता है। चापलुसी से लेकर गंदे राजनिति तक उन्हे बखुबी आते है। शायद ही महाभारत मे ऐसी राजनिति हों ं। इस क्षेत्र में तो पता ही नही चलता कौन किस तरफ से लडता है। या फिर किसका यौद्वा है। महाभारत का क्या हश्र हुआ जग जाहिर है । खैर बो एक युग का ही अंत कर दिया था। ये जो मेरा पत्रकारीता है क्या करेगा । खैर मैं क्या कहु?
हर आदमी किसी ना किसी का पैर खिचनें पर तुला हुआ है। महाभारत में सता थी तो यहाॅ नौकरी या फिर आदमी की चारित्रीक दुर्गुण । वहाॅ भी कभी केंद्र में नारी थी तो यहाॅ भी अब नारी आ गयी है या फिर अपना वही गुण । वहाॅ दुयोधन का बोल बाला था तो यहाॅ भी कोई ना कोई है।मै नाम से कैसे संबोधन कर सकता हॅु मुझे भी डर या मै भी कायर हूॅ ।
एक कहावत है मुॅह मे राम बगल में छुरी ठीक यही बात इस विषय में भी है। कौन क्या करेगा कहना मुश्किल है। ना तो यहाॅ अब कोई संजय है ना तो कोई दुस्साशन कि तरह ईमानदार भाई ।
तरुण ठाकुर

Friday, January 30, 2009

मिशाल गढ़ते नये एंकर !

कहते है काम निकल गया तो पहचानते नही । जब काम था तो आप उनके बाप थें । पिताजी को सम्मान दे या ना दे पर नये बाप को सम्मान देना तो धर्म है। खास कर के अपने धन्धे में । यही तो पत्रकारिता की रीत है । खबर जब सुट हो के आ जाये तो आगे की कारवाई शरू होती है। पर इसके साथ कुछ और हांेता है। ताबातोड तेल मालिस ।
ये मालिस हांेता है अपने स्टोरी को खुबर सुरत लुक देने के लिए। इसका भी असर पड़ता है।जो जितना आगे खबर उसकी उतनी ही खुबसुरत । और हाॅ खुबसुरत लोगो की हो तो और भी खुबसुरत।
एंकर तो हमेशा लल्लो चप्पो करती नजर आयेगी। कोई अच्छा शार्ट ना छोड़ दे इडिटर। क्योकिं उनका तो रेपोटेसन तो विजुअल बाइट पर ही टिका हुआ है। कभी टाॅफी तो कभी पार्टी में या फिर किसी ना किसी बहाने इडिट रूम मे मस्का लगाने जरूर जायेगी। आज के जो महानुभाव एंकर लोग है उन्हें टेक्निकल शब्दावली का मामुली ज्ञान तक नही होता बस काम चल जाता है। उसी ढ़रे पर चल निकलती है। मैनेजमेंट से लेकर इडिटोरियल तक तेल मालिश लगाते चलते है। मैनेजमेंट वालो के साथ तो मटरगस्ती करती तक नजर आ जायेगी। े
कम्पनी छोड़ने के बाद उसे उसके प्रोग्राम का सीडी कौन देगा। थोड़ा मोडिफिकेशन वगैरह करना होगा तो कौन करेगा। चोरी से ये काम तो इडिटर साहब ही करेगें।तो हो गयें खास । और इसके लिए ये कोई कसर छोडते ही नही । बाहर शेर अन्दर मुर्गी । अब क्वालिटी की बात थोड़ी कर लेते है। नये लोग नये अनुभव । सिखना भी होता है। मख्खन लगाना तो
जरूरी है। इनके पास ना तो शार्ट का ज्ञान होता है । ना फिर विषय का ज्ञान ।विषय पर कम पकड़ , पढ़ाई तो करते नही । करते भी तो बहुत कम ही होगें । ना समय मिल पाता होगा
ना जानकारी लेने का जुनुन होता है। खैर इस मामले मे कुछ अपवाद भी है जो पढ़ाई के साथ -साथ मेहनत भी करते है। और वही लोग आगे बढ़ते है। अब तो कुछ ऐसे भी एंकर पैदा
हो गये है जो बिना रिर्सच के ही स्टोरी पर चले जाते है। वहाॅ पर पहुॅच के ही रिर्सच भी पुरा करते है। अब कहने की जरूरत ही नही हैकि उस स्टोरी का क्या होगा। न्युज एंकर भी कुछ ऐसे ही इस धरती पर आ टपके है। जिन्हे जेनरल विषयों पर भी पकड नही है। आये दिन इनके खबरो में आने से आप इन बेजोड़ पत्रकारो से रूबरू हो ही जाते है। अब तो चेहरे मायने रखने लगे है और थोड़ी बहुत आवाज । बाकि अच्छें संस्थान का डिग्री और ढ़ेर सारी पैरबी ।
जब ऐसे लोग आयेगे तो फिडबैक क्या होगा कहने की जरूरत नही। और यही उनकी क्वालिटी उन्हें मजबुर करती है नौकरी बचाने और तेल पानी लगाने को। कभी कभी तो छिछोरेपन पर भी उतर कर अपनी जात तक बतला देते है। एक ऐसी ही खबर ब ाटला हाउस से जुडी हुई हैं जब एक एंकर फिल्ड में गया और दिल्ली पुलिस महानिदंेशक से पुछ बैठा इन आतंकबादियो को एके 47 का लाईसेंस कौन दे देता है। खैर कम्पनी की जो भद्वदी पिटी सो अलग बात है। जब ऐसे लोग आयेगे तो क्या होगा! कहने की जरूरत नही !
कम्पनी में ये कैसे टिके रहते है । ये जग जाहिर ।
पत्रकारिता का स्तर तो गिरेगा ही। पढ़े लिखे लोग सड़को पर आयेगे ही । और चापलुस आगे जायेगे ही । और ऐसे ही पत्रकारिता चाटुकारिता मे तबदिल हो जायेगी । जो सम्मान मिलता था पत्रकारो को उसके बदले गाली तो जरूर मिलेगी।
तरुण ठाकुर

गिद्वो से बचके

गिद्द्यो के नजर से शायद ही कोई बच पाये । दुर आसमान में उड़ते रहते है। पर नजर धरती पर बिखरी लाश पर ही रहती है।कुछ ऐसा ही होता हमारी दुनिया में भी । गिद्य होते है पर मानव मे महामानव के रूप में । सब तो साधु समझते है । लेकिन अन्दर कुछ और होता है। साले धरती पर पड़ी लाशो पर उनकी नजर ऐसे रहती है कि गिद्व भी शरमाजायें । गिद्व तो ठीक लाशो के उपर उड़ते है पर ये गिद्व ना तो लाशो के करीब आते है और ना किसी के कानो कानो खबर होती है । लाशे होती है हमारे यहाॅ आयी नइ्र्र तितिलियाॅ । जो आसमान छुना चाहती है बिन उडें । लेकिन आसमान छुनेसे पहले ही उनके पंख झुलस जाते है। और हमारे यहाॅ जो गिद्व है उनका ध्यान तो हमेशा लाशो पर लगा रहता है।
लाशे भी ख्ुाद व खुद गिद्वो के मॅुह मे जाने को आतुर रहती है। ब्याकुल रहती है कि कुछ मेरा भला हो जाये । कौन जानेगा कि मै किस गिद्व के मुॅह से निकलकर आ रही हॅु।और बन जाती है इन गिद्वो का निवाला।कही कोइ परेशानी नही।बस गिद्व की गाडी में या फिर किसी होटल में । निवाला भी खुद जब राजी है तो क्या कहा जायें। ऐसे ही होते रहता है उन तितिलियो का शिकार । फिर भी नही थमता है गिद्व बाजार में तितिलियो का जाना।
बाबुजी धीरे चलना बडी धोखे है इस राह में ।पर इन्हे तो बस आसमान छुना हर कीमत पर। कितनी गाडीयो का पिछला सीट गवाह बन चुका है। कहने की जरूरत नही कौन और क्या?बस डाइवर साहेब को पाने लाने जाना पडता और फिर वही गिद्व तितली युद्व शुरू।
ये गिद्व कोइ और नही पत्रकारिता के हिरो, और तितलीयाॅ वही जो आती सज सवर के कहर बरपाने खुबसुरत लडकियाॅ।और होता है उनका आमना -सामना उस गुमनाम गली से ।
अमितेश प्रसुन

खबरो का असर होता है!

खबरो का असर होता है सिर्फ आम मे ही नही खास लोगो पर भी । बाहुबली हो या राजनितिज्ञ सबको अपने लपेटो मे उडा लेता है।और जब चुनान आचार संघीता की बात करे तो इनदिनो अपने अलग रूख के लिए याद आता है निर्वाचन आयोग । जो बिना लेट लतीफ हुए चलाता है अपनी छुरी नेताओ पर । और फास लेता है आचार संधीता के घेरे में । कुछ ऐसा ही हुआ एक चुनाव में रेल मंत्री लालु जी के साथ ।
किसी मीडीया हाउस ने प्रचार के लिए लालु जी का भिजुअल भेजा । जिसका पैकेजिग लालु जी को रहनूमा बना रहा था। सारी तैयारी हो चुकी थी खबर रन डाउन पर जाने वाली थी । पर एकाएक उस कंपनी के अधिकारी ने कुछ ऐसा भिजुअल देखा जो हैरान करने वाला करने वाला । उसके होश उड गये उसके अन्दर से आवाज आयी साला मै तो गलत करनेजारहा था।

कोई शिकार उसके हाथ नही लगा था बल्कि तीस सेंकेंड का एक चटपटा विजुअल लगा था । जो खबर को पलट दे रहा था साथ ही साथ उस सप्ताह का टीआरपी भी उसी संस्थान केझोली मेे जा रहा था। तो फिर क्यो न खबर से ही खबर की दुनिया मेंहलचल मचा दी जाये। और ये सप्ताह अपनी हो जाये । स्टोरी बदल दी गयी पहले जो कही ना कही से लालु जी के फेवर मे पैकेजिग हुई थी अब ठीक उल्टा हो गया था । अब जो नया पैकेजिग तैयार हुआ था वो कुछ अनोखा था इस खबर का असर होने वाला था सिर्फ आम में ही नही खास मे भी। एक बडा कदम निवार्चन आयोग को भी उठाना होगा । खबर रन डाउन पर गयी । पहले से ही खबर के लिए पुरी तैयारी शुरू हांे गयी थी ख्ुब प्रचार हुआ सिर्फ ,,,,,,,,,,,पर । लालु ने किया आचार संधीता का उल्घंन खुब बाटी नोट।

जहाॅ संवाददाता ने सोची थी कि इस खबर से कही कोई आश जगेगी पर उस खबर को ही एक अलग रूख् देदिया गया था । पक्ष के बदले बिपक्ष मेंखडा नजर आ रहा था संवाददाता। अब तो लालु जी से ही नजर चुराना पडेगा। सोच-सोच के जमीन में गढा जा रहा था।पर हुआ ठीक उल्टा । बडी दिनो के बाद जब संवाददाता डरते-डरते वहाॅ पहुचा तो हुआ कुछ और लालु जी ने उसे सर आॅखो पर लिया। अपने साथ लेकर धुमना शुरू कर दिया । खैर इसे मीडीया स्र्टनड या फिर राजनीति का कोई फंडा था। खबर का कुछ तो असर हुआ ।फायदे को लेकर कर किया गया काम लालु जी समझ गयें थे या फिर कोई और बात था।
खबर का असर हुआ आचार संधीता के उलंधन का मामला लालु जी पर लगा । मीडिया मे क्या नही होता इसका तो ये एक नमुना है । पर ये जो समझते है कि खबर तो सिर्फ हम जो लिखकर देगे वही चलेगा तो यह गलत सावित हो ता है । इसका तो एक नमुना तो सामने हुआ । मामला कोर्ट तक पहुचा बाकि न्यालय के हाथों में है।
तरुण ठाकुर

खबरी की खबर

खबरो की दुनिया भी अपने आप मे खबर है । जितनी कही जाये उतनी ही कम है। और खबरो कि दुनिया में पहुचना शायद उतना ही मुश्किल । पहले वाली बात नही रहीं कुछ नही तो चलो पत्रकारिता ही सही । अब पत्रकारिता नही तो बाकि सही । पाॅच जोडी जुते घीस जायेगे पर इंर्टन पर भी नही बुलाया जायेगा। गर बुला भी लिया गया तो कुछ चुकाना होगा।अब तो पत्रकारो पर मैनेजमेंट हावी है। तो खक पत्रकारिता होगी या फिर जुगाड मैनेजमेंट वाले पहुच जायें ।सब जगह से वेरा गर्त होगा बेचारे हुनरमंद का।

जुते घिसते-घिसते जेब से परेशान हालत यहाॅ तक पहुच जाती जो घरवालो साहस देते थे वही कह देते है बाबु बहुत पैसा लगा दिये पर अब तो बस करो। कुछ कमाओ धमाओं ।बस यही सारे ख्वाब चकनाचुूर ।बेचारे की हालत पतली नजर उठाता है तो सिर्फ घुमती दुनिया नजर आती है।

कहते है चले थे कही को पहॅुच गये गुमानपुर । यहाॅ तो अपना साया भी नही है जिसे अपना कहा जाये । बडी मुद्वदत के बाद एक रहनुमा मिला। सिलसिला चला लगा ख्वाब में पर लग जायेगें। रहनुमा नेकह दिया कुछ दिन बाद आकर मिलों। काम हो जायेगा। एक आशा जगी मन मेंै । मन मे लाखो ख्वाब जो बुने गये थे लग रहा था पुरे हो जायेगे। कुछ दिन बाद जाकर मिला रहनुमा ने सालिट बहाना बनाया। बेचारे को बहाना तो मानना पडेगा दुसरा कोई चारा भी तो नही है । मन को तसल्लिदेत लौटना पडा। घर वाले जो आशा लगाये बैठे थे शाम होते होते उनका फोन घनघना उठा। बिन कोइ सवाल जबाब के यही सवाल हुआ क्या हुआ? भरे मन से लडके ने कह दिया बाद मे बुलाया है। बिना देर किए लडके के एक शुभचिंतक ने जले पर नमक छिडका-साला कहते थे सिधे बीए करो और जेनरल कामपिटिशलन में लग जाओ साला अपने को समझदार समझनेलगा था बाल धुप मे नही पके है अनुभव हैंसाले प्रोफेसनल र्कोश करलेगे तो नौकरी तो सौ प्रतिशत पक्की है अब उखा्रड रहे हो उखाडो । एक बार गाॅव में नजर घुमाके देख लो तुम से तो अच्छा तो सुरेंद्र का लडका है वो कहा दिल्ली जाकर पढा है तुम्हारी तरह । देखो नेभी मे होगया। पढाइ्र्र मे जी चुरानेका नतिजा तुम्हारे उपर है। और फोन कट।
अब काटो तो खुन नही । चारो तरफ सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा। दिल में एक धुंध उठता है और मन कहता है बेटा तुमसे तो अच्छा बिन पढा लिखा आदमी है जो मेहनत करके दाल रोटी चला लेता है। साला पढ लिखके ये छिछोरापन जो करना सुनना पडता है ये तो नही करना पडेगा। और उसका दिल टुट जाता है । हिम्मत जो बचाके रखा था वो भी खत्म । एक तो पहले ही ये पत्रकारिता के संस्थानो ने गला घोटा जो बचा वो घर वाले घोट रहे है। यार मर जाना ही बेहतर है ।

जरा इन से उबरकर होश संभालता है। तो आशा की किरण नजर आती है किसी दोस्त से खबर मिलती हैयार एक रिपुटेड चैनल में इंर्टन का जुगाड हांे जायेगा। पर एक प्रोब्लम है। तु आ बताता हॅु । बेचारा जिंदगी से निराश उसे क्या चाहिए और पहुॅच जाता है दोस्त के पास सुनता है शर्त । कठोर पर ये सत्य है मेरा भी जुगाड कुछ इसी तरह से हुंआ है। देख भाई आगे बढना है तो शर्त तो मानना होगा। क्या जा रहा है यही ना कि छह महीनेतक सैलरी मे से मात्र तीन हजार ही ना देने है अरे बेकार से बेगार भला। बडी मख्खन लगा कर दोस्त समझाता है।फिर अंत मे मानता है। एक बार पत्रकारिता का जो देवता उसके अंदर है उसे धिकारता है पर वह तत्काल इस पर ब्रेक लगाकर आगे कि सोचने लगता है। यार एक तो बेकारी छेल रहे थे अब मिला तो छोड दे।नही याार कर लेते है फिर देखेगे साले को मजा नही चखाए तो कहेगा । मैनेजमेंट और घटिया काम क्या समय आगया है। किताबो में क्या पढा और हो क्या रहा है। लगता है सारे सर लोग भी मैनेजमेंट वाले की तालु ही चाटते आये ह।ै कम से कम प्रैटिकल बाते बता दिया करते तो उनका क्या हो जाता र्। खैर जो हो गया सो हो गया ।

इ्रर्टन के लिए इ्रर्टभ्यु का होना है सो तैयारी तो करना ही होगा सो आज से ही लगना होगा नही तोये भी हाथ से चला जायेगा। और शुरू होता है फोन घुमाना । सब से बात किसके पास अनुभव है रिर्सच शुरू होता है। एक दोस्त कहता है अरे यार इसकी जरूरत नही है सब चलता है जब जुगाड ही लगाया है तो इ्रंटरभ्यु साला बेवकूफ है क्या रे ? कुछ नही पुछेगा । अरे जो बुलाया है उसी को तो लंेना है जा आराम से । अरे यार मेरे पास अनुभव है। जा जा।
आज खुशी का दिन रहता है क्योकि एक बुरा स्वप्न का अंत हेा गया। आज इ्रंर्टन पर हो गया । बाप रे बाप साला भगवान मिल गया। कल से आफिस जाना है। यार सेलेरी भी दस देगा ठीक ही है। छह महीना ही ना देना है तीन हजार से क्या जाता है । जो परेशानी है वो भी दुर हो जायेगा । सात हजार कम थोडे ही है। आगे देखा जायेगा । इस खुशी मे पार्टी भी हुई । दोस्तो ने जम कर ठुमका लगाया।यार अपने पुराने दोस्तो का भी हुआ है । सब साथ ही है । उसका भी अपनेसाथ ही हुआ है। अरे वही जो साथ पढती थी। क्या नाम है अरे वही। मजा आ जायेगा ।कैफेटेरिया मे बैठेगे। पर काम भी धासु करेगे । अपना काम बोलेगा। एडिटर सर काम के चलते हमे पहचानेगे ।इन्ही आशाओ के साथ ख्वाब मे पर लगाकर वो उडान भरने लगता है।

जिंदगी चल निकलती है काम बोलने लगता है। उसका पैठ जम जाता है । हर तरफ उसका सिक्का चल निकलता है। लोग कहने लगते है ये लडका एक दिन बहुत आगे जायेगा।तारिफ हर जगह। पर एकाएक ग्रहण लग गया । न जाने किसकी नजर लग गयी बेचारे पर।
आफिस राजनिति से तो बेचारेका दुर-दुर तक कोई रिश्ता नही था सो राजनिति केधुरंधरो ने उसे पछाड दिया। यहाॅ काम काम न आया। किसी ने उसके बगावत को किसी दुसरे के कान मे कह दी। खबर पहुच गयी उस आका के कानो तक । जिसने शर्त रखी थी छह महीने तक तीन हजार देनेके ।और साहब जादे वादेये से मुकर गये थे या फिर भूल बस उस लडकी से कह दिया कि अब क्या कर लेगा मैनेजर। और यही बात मैनेजर से कह दी । लडकी मैनेजर की विश्वास पात्र निकली।और लडका दगाबाज । यह वही लडकी थी जो कभी दगाबाज लडके के साथ गलबहिया डाले घुमती थी आज लउके के लिए खुद दगाबाज बन गयी।
एकाएक रात मे मैनेजर का फोन आता है कहता सौरी आप को हटाया जाता है । अब आपकी जरूरत नही है। कल से आने कि जरूरत नही है और फोन कट ।
लडकी आज ओहदेदार बन गयी है । काफी दबदबा है उसका । होगा भी क्योनही । ये तो आप सब जानते है । पर लडका कहा है ना मुझे मालुम है न घर वालो को । आपको पता चले जरूर बताइयेगा।
तरूण ठाकुर

कृष्ण अब मान भी जाओं।

भगवान श्री कृष्ण वैंलेंटाइन डे पर पटना आना चाहतें है। पर उन्हें पटना के हालात के बारे में जानकारी नही हैै ।
जिद करने लगें है। मेंरे लाख समझाने के बाद भी मान नही रहे है उन्हें अभी भी धरती द्वापर युग जैसी लग रही है।
शायद उन्हें नही पता ये कलयुग है यहाॅ रास रचाने वालो के साथ क्या होता हैं ।

रास रचाये,लीला की तुने।
हठ भी की, जो जग जाहिर है।
बेमन से भी जो काम किया।
सबको वो भाया।
पनघट हो या फिर यमुना।
आशातीर सफलता पायी।
अब तु थम भी जा
अब ना करना ऐसा
वरना पकड़े जाओगे
मान भी जाना तु
वरना कोई और तुम्हे समझायेगा।
फिर ना कहना
क्युॅं न पहले बतलाया तु।
बेरहम है लोग यहाॅ
तुमको ना पहचानेगे।
जो रास रचाये थे द्वापर में
फिर ना दोहराना तु।
गर पकडे जाओगे
बहती गंगा मान तुम्हे
हर कोई कुछ कह जायेगा।
फिर ना कहना
पहले क्युॅ ना बतलाया तु।
मै मना नही करूगा आने से
वरना तू कुछ कह जायेगा।
थोड़ी तकलीफ लगेगी ।े
पर यही यहाॅ की रीत हैं ।
बहती गंगा में हाथ धोना
कलयुग की पहली सीख है।
तु अब भी है सुर-ताल में
ऐसे ना बहकेगी कोई बाला।
नासमझ कुछ तो समझ।
ना यहाॅ अब यमुना है ना पनघट
फिर यहाॅ ना कोई सुनने वाला।
बैठे रहजाओगे सदियों तक
ना आयेगी कोई बाला।
मै तो कहता हॅु तु आ ही मत
अब ये नही बचा है तेरे लायक
ना यहाॅ पर कोई ग्वाल बाला ना कोइ्र्र कंस मामा।
आयेगा तो पछतायेगा
क्योकिं यहाॅ ना चलने वाला तेरा
तेरे दिन वो लद गये
जब तू करता था चोरी
सच सच बतला देता हॅु तुझे
यहाॅ ना कोई ग्वाला
पकड़े गयेतो जाओगंे सिधे थाना।
नही चलेगी जहाॅ तेरी कोई लीला
वो दिन कुछ और था
जब चलते थे तेरे
यहाॅ करनी पडेगी थोड़ी जेब ढिला ।
तुमको मैं बतला दु
कितने पापड मैंने बेले
कितने घरो से ठोकर खायी
कई बार हुई जेले।
सुन भई तु आ मत
तेरे लायक नही ये जेलें ।
रोयेगा तु ना समझी को तो छोड़
कहता हूॅ अब तु मान भी जा
गर ना माने तु तो जायेगा जेल।
फिर ना कहना ये कलयुग का कैसा है खेल।
बाबु कृष्ण अब मान भी जा
आखिरी बार हॅु तुमको समझाता।
ये कलयुग है यहाॅ ना चलती कोई माया।
मान ले तु मंेरी विनती
ना कर तु ऐसी गलती।
तरूण ठाकुर

आम आदमी की सोच।

सरकार के पास पैसे नही है । कर्मचारी सड़क पर उतर आये है। हड़ताल जारी है । जनता से संर्पक साधने के लिए लगातार विज्ञापन वाजी जारी है। सरकार कह रही है हड़ताल अवैध है। कर्मचारी माॅगो को ले अड़िग है। सरकार के रवैये से कर्मचारी हमेशा हर बार रूवरू होंते रहे है । ये पहला हड़ताल नही है । इससे पहले भी हड़ताले होती रही हैं। सरकार झुकती रही है। सरकार का खजाना खाली है। विकाश या फिर हड़ताल का नारा देकर सरकार जनता से विज्ञापन के द्वारा जुड़ना चाह रही है। पर सरकार ये नही जानती क्या कि कर्मचारी भी जनता के बीच से ही आते हैै।वो भी विकाश चाहते है। अगर सचमुच सरकार विकाश चाहती है तो अपने उपर लगाम लगायें। महगाई ना बढ़ने दे । अराजकता रोके। घुसखोरी जो चरम पर है उसे कम करे । योजनाओं को सही मायने में आम जन तक पहुचाये। राजनेता अपने खर्चे में कमी लाये। तो क्या जरूरत पड़ेगी विज्ञापन देकर जनता से जुड़ना ही नही पड़ता जनता तो राजनेताओं को हाथो -हाथ लेती। हड़ताले नही होती। विकाश करने के लिए किसी सुशासन की सरकार की जरूरत नही पड़ती। सुशासन जनता ला देती । तो फिर शिर्ष पर बैठे राजनेता ऐसे विज्ञापन से तो बचे। उसी पैसे को विकास के कामो में लगाये।


गाॅधी ने एक बात कही थी अगर अंतिम आदमी तक तुम अपने आप को पाते हो तो मान लिया जायेगा तुम सही दिशा में काम कर रहे हो। क्या आज ये हो रहा है? ऐसी कोई योजना बची है जिसमें राजनेता से लेकर आला अधिकारियों का कमिशन ना बधा हो। पर ये भी सच है कि आज तक किसी बडे नेता या अधिकारी को सजा हुई हो । चाहे वो सरकार का अंग हो या ना हों । पर कृपा जरूर बनी रहती है तभी तो एक आज तक किसी को किसी मामले में सजा नही हुई। नई सरकार आती पहले वाले फाइलो पर से धुल हटाती है। लोग समझने लगते है सरकार काम कर रही है अब तो पक्का नेताओ को कानून का पाठ याद हो जायेगा। कुछ दिनो तक लोगो में ये चर्चा आम होता है । फिर वही सरकार उसी फाइल को धुल पडने के लिए खुले मेंछोड़ देती है। जब बिहार में सुशासन बाबु की सरकार आयी तो लालु मामले में कुछ ऐसा ही हुआ अब तो इस मामले की खबर भी अखबारो में नही आती। त्वरित न्याय प्रणाली फास्टटृैक र्कोट के कुछ मायने नचर नही आतें ।

ये सौ आने सच है।
जनता का दरबार क्या है ? क्या वास्तव में जनता का दरबार है ? यहाॅ कें दरबार का राजा जनता है या फिर राजा के दरवार में जनता आती है। क्या जनता के लिए राजा खडा होता है
क्या जनता को सम्मान दी जाती है। हर सवाल का जबाब जनता खुद जानती है। क्या जनता दरवार का चोला लगा लेने से जनता का कल्याण हो जायेगा। विकास के लिए दरबार की जरूरत पड़ गयी ! सुशासन का मतलब क्या यही है? क्या सुशासन की नई परिभाषा यही है! जहाॅ पर सरकार का ही एक अंग काम ठीक ढंग से नही कर रहा है और उसके लिए राजा को दरवार लगाने की जरूरत पड़ गयी । मतलब साफ है काम ठीक ढंग से नही हो रहा है। कर्मचारी और सरकार में अच्छी ताल-मेल नही है। जनता के लिए कर्मचारी काम नही कर रहे है तभी तो दुर दराज से लोग फरियाद लेकर राजा के दरबार मेआते है। जनता का दरबार राजा का एक प्रोपगेंडा मात्र है । जहाॅ राजा जनता को धोखा दे रहा है। उसका कोई ना उद्वेश्य है जो वह जनता से साधना चाहता है। मतलब साफ है ,
राजा अब जनता के गाॅव जा रहा है । उसके ताम-झाम के लिए आला अधिकारी लगे हुए है।जनता भी खुश है। राजा उसके गाॅव आ रहा हैं। गाॅव मे होगा । जो सड़के अब तक नही बन पायी थी वो बन जायेगी । पर ये ख्वाव अधूरे रह जायेगे। जनता नही जानती ये राजा का चुनावी कम्पेन मात्र है।